Shiv Tandav Ravan stuti - Bhagwat Vandana

Wednesday, December 26, 2018

Shiv Tandav Ravan stuti




Ravan krit Shiv Tandav Stuti

जटाटवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले - गलेऽव लम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्गमालिकाम् ।
डमड् डमड् डमड्डमन्नि नाद वड्डमर्व्वयं - चकारचण्ड ताण्डवं तनोतु नः शिवःशिवम् ॥
॥१॥

जटा कटाह सम्भ्रमभ्रमन्नि लिम्प निर्झरी - विलोल वीचि वल्लरीविराजमान मूर्द्धनि ।
धगद् धगद्धगज्ज्वलल्ललाट पट्ट पावके - किशोरचन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणंमम ॥
॥२॥

धरा धरेन्द्र नन्दिनी विलासबन्धु बन्धुर - स्फुरत्दृगन्त सन्तति प्रमोद मानमानसे ।
कृपाकटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि - क्वचित्दिगम्बरे मनो विनोदमेतुवस्तुनि ॥
॥३॥

जटा भुजङ्ग पिङ्गल स्फुरत्फणा मणिप्रभा - कदम्ब कुङ्कुम द्रवप्रलिप्त दिग्व धूमुखे ।
मदान्धसिन्धुर स्फुरत्त्व गुत्तरी यमेदुरे-मनो विनोदम्अद्भुतं बिभर्त्तु भूतभर्तृरि ॥
॥४॥

सहस्त्र लोचन प्रभृत्यशेष लेख शेखर- प्रसूनधूलि धोरणी विधूसराङ्घ्रि पीठभूः ।
भुजङ्ग राजमालया निबद्धजटाजूटकः - श्रिये चिराय जायताम् चकोर बन्धुशेखरः ॥
॥५॥

ललाट चत्वर ज्वल धनञ्जयस्फुलिङ्गभा - निपीतपञ्च सायकं नमन्निलिम्प नायकम् ।
सुधामयूख लेखया विराजमानशेखरं - महा कपालि सम्पदे शिरो जटालमस्तु नः ॥
॥६॥

कराल भालपट्टिका धगद् धगद्धगज्ज्वल - धनञ्जयआहुती कृत प्रचण्डपञ्च सायके ।
धराधरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्रपत्रक - प्रकल्प नैक शिल्पिनित्रिलोचने रतिर्मम॥
॥७॥ 

नवीन मेघ मण्डलीनिरुद्ध दुर्धर स्फुरत् - कुहू निशीथिनीतमः प्रबन्ध बद्धकंधरः ।
निलिम्प निर्झरी धरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः - कलानिधानबंधुरः श्रियं जगत्धुरन्धरः ॥
॥८॥

प्रफुल्ल नील पङ्कजप्रपंच कालिम प्रभा - वलम्बि कण्ठ कन्दलीरुचि प्रबद्ध कन्धरम्।
स्मरच्छिदंपुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं- गजच्छिदांध कच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥
॥९॥

अखर्व सर्व मंगलाकला कदम्ब मञ्जरी - रसप्रवाह माधुरी विजृम्भणा मधुव्रतम्।
स्मरान्तकंपुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं - गजान्तकान्ध कान्तकं तमन्तकान्तकं भजे॥
॥१०॥

जयत्वद भ्रवि भ्रम भ्रमद्भुजङ्गम श्वस - द्विनिर्गमत्क्रम स्फुरत् करालभाल हव्य वाट्।
धिमिंधिमिं धिमिं ध्वनंमृदङ्ग तुङ्ग मङ्गल - ध्वनि क्रम प्रवर्त्तितप्रचण्ड ताण्डवः शिवः॥
॥११॥

दृषद् विचित्र तल्पयोः भुजङ्गमौक्तिक स्रजोः - गरिष्ठ रत्नलोष्ठयोः सुहृ द्विपक्षपक्षयोः ।
तृणार विन्द चक्षुषोः प्रजा मही महेन्द्रयोः- समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम् ॥
॥१२॥

कदा निलिम्प निर्झरी निकुञ्जकोटरे वसन् – विमुक्त दुर्मतिःसदा शिरस्थमञ्जलिं वहन्।
विलोललोल लोचनो ललामभाल लग्नकः शिवेति मन्त्रमुच्चरन् सदा सुखीभवाम्यहम् ॥
॥१३॥

निलिम्प नाथ नागरीकदम्ब मौलि मल्लिका–निगुम्फ निर्भरक्षरन्मधूष्णिका मनोहरः ।
तनोतु नोमनो मुदं विनोदिनीमहर्निशं - परश्रियः परं पदंतदङ्ग जत्विषां चयः॥
॥१४॥

प्रचण्ड वाडवानल प्रभा शुभप्रचारिणी - महाष्टसिद्धि कामिनी जना वहूतजल्पना ।
विमुक्तवाम लोचना विवाहकालिक ध्वनिः - शिवेति मन्त्र भूषणं जगज्जयायजायताम् ॥
॥१५॥

इमं हि नित्यमेवमुक्त मुत्त मोत्तमंस्तवं - पठन् स्मरन्ब्रुवन् नरो विशुद्धिमेति सन्ततम्।
हरेगुरौ सुभक्तिमाशु यातिनान्यथा गतिं - विमोहनंहि देहिनां सुशङ्करस्यचिन्तनम्॥
॥१६॥ 

पूजा अवसान समये दशवक्त्रगीतं - यःशम्भु पूजन परंपठति प्रदोषे ।
तस्यस्थिरां रथ गजेन्द्रतुरङ्ग युक्तां - लक्ष्मींसदैव सुमुखीं प्रददातिशम्भुः॥
॥१७॥
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